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बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
भवार्थ : गुरु को नारायण का रूप माना गया हैं। हमेशा हमलोग अपने गुरु के चरण कमलों की वंदना करते हैं।ऐसा कहा जाता है, कि सूरज के उगने से फैला सारा अँधेरा नष्ट हो जाता हैं। इसी तरह गुरु हमारे मोहरूपी सभी अंधकार को ख़त्म कर देता हैं।डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।
शिक्षक एक कुम्हार की तरह बच्चों के व्यक्तित्व को गढ़ता है। एक दीपक की तरह जलकर विद्यार्थियों की अज्ञानता का अंधकार दूर करता है। गुरुजनों का सम्मान करने से व्यक्तित्व में निखार आता है। गुरु ईश्वर का स्वरूप होता है। 5 सितंबर अपने इन्हीं शिक्षकों को शत-शत नमन करने का दिन है। भारत में हर साल की तरह इस बार भी 5 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है।
देश के पहले उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक मशहूर दार्शनिक और शिक्षाविद थे। उनका जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में हुआ था। वह शिक्षा के बड़े पक्षधर रहे। उन्होंने भारतीय संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार किया। एक बार राधा कृष्णन के कुछ शिष्यों ने मिलकर उनका जन्मदिन मनाने का सोचा। इसे लेकर जब वे उनसे अनुमति लेने पहुंचे तो राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाय अगर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा तो मुझे गर्व होगा। इसके बाद से ही 5 सितम्बर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। पहली बार शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था।
गुमनामी के अंधेरे में था, पहचान बना दिया
दुनिया के गम से मुझे, अनजान बना दिया
उनकी ऐसी कृपा हुई, गुरु ने मुझे इंसान बना दिया
डा. राधाकृष्णन के विचार आज के युग में भी काफी प्रासंगिक हैं। डा. राधकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन से परिचित करवाया, वे भारतीय संस्कृति के प्रख्यात शिक्षाविद महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिंदू विचारक थे। अपने इन्हीं महान गुणों के कारण भारत सरकार ने उन्हें 1954 में भारत रत्न से नवाजा। इसके बाद वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने। वह विभिन्न उपाधियों पर रहते हुए भी हमेशा छात्रों से जुड़े रहे। बता दें डा. साहब अपने राष्ट्रप्रेम के लिए भी विश्व विख्यात थे। उनका कहना था कि शिक्षक समाज के एक ऐसे शिल्पकार हैं, जो बिना किसी मोह के इस सम्मान को तरसते हैं।
गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय
बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय।।
कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से गुरू की महिमा का वर्णन किया है। कबीर दास जी कहते हैं कि, जब आपके सामने गुरू और गोविंद दोनों खड़े हों तो किसके सबसे पहले पांव लगना चाहिए, गुरू ही ईश्वर का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अर्थात गुरू सबसे महान हैं, इसलिए सर्वप्रथम आपको गुरू का ही वंदन करना चाहिए।